Tuesday, December 22, 2009

चाँद और तारे

This is a poem written in response to another poem in Apr'09. So I strongly urge you read the seed poem before reading mine.

The seed poem was written by one of my dearest friends Smriti Khullar and she has been kind enough to upload the same on her blog, here is the link --> http://rythmsandthoughts.blogspot.com/2009/12/oo.html

I typically don't put up my poems on my blog, but this is an exception, thanks to Smriti :)

अमावस की एक काली रात में, तुमने जाना तारे क्या होते हैं,

और हर छलके मोती में, तुम संग जाने कितने रोते हैं.


तुमने दिल की बात कही, हमने सुनी और समझ गए,

पर अपनी बात कैसे करें बयान, हम तारे थोड़ा उलझ गए.


सो कलम तो उठाई, पर फूँक फूँक कर चलता हूँ,

क्योंकि कसम से तुम्हारे इस चाँद से बहुत जलता हूँ.


चुरायी हुई रोशनी लेकर, अँधेरे में तुम्हें रिझाता है,

आई कहाँ से इतनी रौनक, कभी नहीं बतलाता है.


कुछ दिन खूब हँसाता है, साथ निभाता है,

फिर एक दिन ये चंचल मन, छू मंतर हो जाता है.


तब आती है एक काली अकेली अँधेरी रात,

जब आसमान में केवल हम तारों का होता है साथ.


उस रात छत पर अकेली तुम गुमसुम गुमसुम सी होती हो,

और कभी कभी हमारे साथ मिल-बाँटकर थोड़ा सा रोती हो.


पर फिर आ जाता है एक नया चाँद, अपनी रोशनी बिखेर के,

और फिर खो जाती हो तुम उसकी चाँदनी में, हमसे मुँह फेर के.


तो आज तुम्हें बताते हैं की इतनी रोशनी चाँद कहाँ से लाता है,

रात के अँधेरे में, तुमसे नज़रें बचाकर, हमसे ही तो वो चुराता है.


तुम पूछती हो, सब जानकार भी चाँद की ये चोरी क्यों चलती रही?

क्योंकि हम तारों की आँखों के तारे को, रात में भी रोशनी जो मिलती रही!


तुम पूछती हो, फिर आज ये सब मैं तुम्हें क्यों बतलाता हूँ?

क्योंकि हर महीने तुम्हारी आँखें नम, मैं देख नहीं पाता हूँ!


चाहता हूँ उड़ो आसमान में, तारों को करीब से आकर देखो,

कभी तो......, कभी तो एक तारे को, अपना चाँद बनाकर देखो!


- आनंद गौतम
8th April 2009

There was yet another response to this, which was written by another dear friend Kartik. Here is the link --> http://bloggerkartik.blogspot.com/2009/12/another-poetic-response.html

4 comments:

Smriti Khullar said...

would just say "thanx"
:)

Abhishek Anand said...

just loved reading it....

Anon said...

I seem to have read this before.
Interesting nevertheless.

Unknown said...

Here is the response to your response.

:-)