अमावस की एक काली रात में, तुमने जाना तारे क्या होते हैं,
और हर छलके मोती में, तुम संग जाने कितने रोते हैं.
तुमने दिल की बात कही, हमने सुनी और समझ गए,
पर अपनी बात कैसे करें बयान, हम तारे थोड़ा उलझ गए.
सो कलम तो उठाई, पर फूँक फूँक कर चलता हूँ,
क्योंकि कसम से तुम्हारे इस चाँद से बहुत जलता हूँ.
चुरायी हुई रोशनी लेकर, अँधेरे में तुम्हें रिझाता है,
आई कहाँ से इतनी रौनक, कभी नहीं बतलाता है.
कुछ दिन खूब हँसाता है, साथ निभाता है,
फिर एक दिन ये चंचल मन, छू मंतर हो जाता है.
तब आती है एक काली अकेली अँधेरी रात,
जब आसमान में केवल हम तारों का होता है साथ.
उस रात छत पर अकेली तुम गुमसुम गुमसुम सी होती हो,
और कभी कभी हमारे साथ मिल-बाँटकर थोड़ा सा रोती हो.
पर फिर आ जाता है एक नया चाँद, अपनी रोशनी बिखेर के,
और फिर खो जाती हो तुम उसकी चाँदनी में, हमसे मुँह फेर के.
तो आज तुम्हें बताते हैं की इतनी रोशनी चाँद कहाँ से लाता है,
रात के अँधेरे में, तुमसे नज़रें बचाकर, हमसे ही तो वो चुराता है.
तुम पूछती हो, सब जानकार भी चाँद की ये चोरी क्यों चलती रही?
क्योंकि हम तारों की आँखों के तारे को, रात में भी रोशनी जो मिलती रही!
तुम पूछती हो, फिर आज ये सब मैं तुम्हें क्यों बतलाता हूँ?
क्योंकि हर महीने तुम्हारी आँखें नम, मैं देख नहीं पाता हूँ!
चाहता हूँ उड़ो आसमान में, तारों को करीब से आकर देखो,
4 comments:
would just say "thanx"
:)
just loved reading it....
I seem to have read this before.
Interesting nevertheless.
Here is the response to your response.
:-)
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